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composition scheme and regular scheme in Gst

Gst में कंपोजिशन स्कीम और रेगुलर स्कीम

Composition scheme :-

                                       कंपोजिशन स्कीम की शुरुआत छोटे व्यवसायियों को  ध्यान में रखकर की गई है इस स्कीम के तहत छोटे व्यापारी जिनका व्यापार कभी-कभी चलता है अर्थात चाहे मैन्युफैक्चर हो, ट्रेडर्स हो ,या रेस्टोरेंट्स संचालक हो इन्हें इस स्कीम के तहत रखा जा सकता है इस स्कीम की मुख्य बात यह है की इसमें व्यापारी को टैक्स के नियमों से बाधित नहीं किया जाता है कंपोजिशन स्कीम मैं व्यापारी टैक्स के सारी झंझट से निजात जाता है अर्थात आपको जीएसटी के जटिल नियमों को कम कर दिया जाता है जोकि छोटे करदाताओं के लिए राहत की बात है

COMPOSITION SCHEME
COMPOSITION SCHEME

कंपोजिशन स्कीम की लिमिट क्या है :-

                                                               कंपोजिशन स्कीम का लाभ वे Manufacturer ,Traders, Restaurant  संचालक ले सकते हैं, जिनका सालाना टर्नओवर डेढ़ करोड़ से कम हो या डेढ़ करोड़ हो। यदि कंपोजिशन स्कीम मैं रहने वाला मैन्युफैक्चरर ट्रेडर्स रेस्टोरेंट्स संचालक डेढ़ करोड़ से ज्यादा सालाना टर्नओवर हो जाता है तो वह रेगुलर स्कीम में ऑटोमेटिक ट्रांसफर हो जाता है।

COMPOSITION
COMPOSITION 


कंपोजिशन स्कीम के तहत करदाता को जीएसटी में कितने परसेंट टैक्स देना होता है:-

कंपोजिशन स्कीम के तहत करदाता के लिए जीएसटी में 3 भागों में टैक्स परसेंट हैं Manufacturer को जीएसटी में सालाना टर्नओवर का एक परसेंट टैक्स गवर्नमेंट को देना होता है।
Traders को gst में सालाना टर्नओवर का दो परसेंट टैक्स गवर्नमेंट को चुकाना होता है एवं रेस्टोरेंट्स संचालक को जीएसटी में सालाना टर्नओवर का 5  परसेंट टैक्स देना होता है।
सबसे ज्यादा टैक्स रेस्टोरेंट्स संचालक को ही देना होता है बाकी मैन्युफैक्चर और ट्रेडर को कम देना होता है।
साथ ही कंपोजिशन स्कीम लेने वाले करदाता कभी भी टैक्स इनवॉइस जनरेट नहीं करते हैं
एवं इन्हें आईटीसी जिसे इनपुट टैक्स क्रेडिट कहते हैं का लाभ भी नहीं ले सकते है एवं ये customer  से भी टैक्स नहीं ले सकते है।
इस scheme के तहत taxpayer अपने स्टेट में ही बिजनेस कर सकता है इसके अलावा वह दूसरे स्टेट में बिजनेस नहीं कर सकता है
यह इस  स्कीम की बहुत बड़ी खराबी है


कंपोजीशन scheme  में साल में कितने बार रिटर्न फाइल करनी होती है:-

Composition scheme में करदाता को 1 साल में 4 रिटर्न फाइल करनी होती है जोकि हर क्वार्टर के लिए एक रिटर्न होती है अर्थात 3 महीनों का एक क्वार्टर होता है हम कह सकते हैं कि 3 महीनों में टैक्सपेयर को एक रिटर्न फाइल करनी होती है यह करदाता के लिए अच्छी स्कीम है इसमें करदाता मंथली रिटर्न फाइल करने से बच जाता है साथ ही जीएसटी इनवॉइस कलेक्ट करने की भी आवश्यकता नहीं होती है
और इसमें कुछ ही रिटर्न फाइल करनी होती है रेगुलर स्कीम की तरह बहुत सारी रिटर्न फाइल नहीं करनी होती है कंपोजिशन स्कीम की रिटर्न को जीएसटी में gstr-4 कहा जाता है टैक्सपेयर को जो कंपोजिशन स्कीम मैं बिलॉन्ग करता है वहां gstr-4 रिटर्न फाइल करता है

कंपोजिशन स्कीम में टैक्सपेयर कैसे अप्लाई कर सकता है :-
                                                                                                      नॉर्मल जीएसटी रजिस्ट्रेशन की तरह ही कंपोजिशन स्कीम में अप्लाई कर सकते हैं ऐसा आवश्यक नहीं है की डेढ़ करोड़ से कम सालाना टर्नओवर वाले करदाता को कंपोजिशन स्कीम ही लेनी होंगी वह रेगुलर स्कीम में भी रिटर्न फाइल कर सकता है


Regular scheme/normal scheme


                                                                Regular scheme में करदाता को monthly return भरना होता है इसमें टैक्सपेयर को बुक्स ऑफ अकाउंट मेंटेन करने की आवश्यकता होती है


Regular Scheme
Regular Scheme


 करदाता को मंथली जीएसटीआर 3b और gstr-1 रिटर्न फाइल करनी होती है इस स्कीम में करदाता आईटीसी का लाभ ले सकता है




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